Thursday, June 26, 2008

शहर


इस शहर की शाम का आलम बड़ा अजीब है,
राहें कितनी दूर हैं पर, मंजिल बहुत करीब है॥
हमने देखी हैं जलती लाशें, लोगों की,
यहाँ जलते जिंदादिल, मुर्दे खुशनसीब हैं॥
रोती आंखों को देखा है, टूटती साँसें देखी हैं,
यहाँ रोते हैं हँसते लोग, खुश बहुत रकीब हैं॥
टूटती हैं शाखें जब, मुरझाते फूलों को देखा है,
धीरे-धीरे रूकती, हर धड़कन को हमने देखा है...
यहाँ मरी इंसानियत दिल बड़े गरीब हैं॥
मरती चाहत देखी है, ख्वाब टूटते देखे हैं,
हर पल मिलते सुख पल भर में जाते देखे है,
खिलते ख्वाब इस शहर में, बनते महलों को देखा है...
खुशियों वाली गलियाँ यहाँ बदनसीब हैं॥
इस शहर की शाम का आलम....

"राहुल शर्मा "

Wednesday, June 18, 2008

मंथन

चलते - चलते जीवन में जब राह हसीं वो आयी थी,
अपने विचलित मन को, जब वो ख़ुद भी रोक न पायी थी...
बंधन थे... हम दूर खड़े थे...पर चाहत का हर स्वर था पाया,
गा रही थीं धड़कन उस पल, राग जो दिल को था भाया...
उन गीतों की हर कड़ी में, बस तेरा ही साया था,
जब रूठी थी दूनियाँ हमसे, साथ तुम्हे तब पाया था...
हर-सूं तेरी चाहत फैली, अगणित खुशियाँ पायीं थी,
जब तेरे इक स्वीकार पे हमने कितनी कसमें खायी थी॥
चलते - चलते .......
अपने विचलित ........

ढूंढ़ रहा मैं अब वो गजलें, जिनमे बस तेरे ही स्वर हैं,
उन कसमों की कस्में मुझको, मीरा का वो कृष्ण अमर है...
अमर है उनकी प्रेम कहानी, मुरली की हर तान अमर है,
नील गगन से बड़ा वो इक पल, उस पल की हर साँस अमर है...
हमपे यकी है दूनियाँ को अब उनको ही रुसवाई है,
हार जीत का पहना जब किस्मत प्यार हार कर आयी है...
भटक रहा था ये पागल मन पर अब न बदरी छायेगी,
उन सुरों के संग न कोई रचना मेरी जायेगी॥
चलते - बड़ते इस जीवन में वो राह कभी ना आयेगी...
चलते - बड़ते इस जीवन में.......

लगा अगन जो दिल से खेले वो सच्चा फनकार नही है,
देकर वादे कस्में तोडे वो कोई प्यार नहीं है...
नहीं है वो उस प्यार के कबील जो पवित्रता का अपमान करे,
घृणित करे रिश्तों को जो वो सच्चा यार नही है...
जिस जहाँ में सपनों का सम्मान नहीं है,
उन राहों के आगे कोई संसार नहीं है॥
नहीं है उस संसार की कीमत जिसमें प्यार नही है...
नहीं है उस संसार की कीमत........


"राहुल शर्मा"
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