वो आहट थी तेरी ... |
जो तूफां सा था वो साँसें थी मेरी
समंदर था वो या थे आँखों के झरने
वो दिल में हमारी थी धड़कन अधूरी
आरजू की जो मूरत थी हमने मिटायी
उसे फिर बनाने क्यूँ फिर से तुम आये
बाखुदगी में खोया था मन जो ये काफिर
उसे फिर जगाने ए खुदा फिर क्यूँ आये
रहमत ने तेरी उजाड़ा ये दामन
फिर से वो बादल एहसानों के छाये
यही गर है चाहत अब फिर से तुम्हारी
रहूँगा तुम्हारी ही ग़ुरबत के साये ...
इबादत से झुकती जहाँ थी निगाहें
वो मंदिर कहीं था या दरगाह थी मेरी
बहारों का निकला जहाँ से वो कारवां
वहाँ पे खड़ी थीं मजारें जुनूँ की ...
वो बस एक पल था जब था साथ तेरा
ये बातें सदियों की जब यादें हैं तेरी
ये किस्से हैं सारे ये बातें पुरानी
अधूरे हैं वादे अधूरी वो कहानी
वो चाहत ना मेरी, ना थी वो तुम्हारी
ये किस्से हैं सारे ये बातें पुरानी
ये किस्से हैं सारे ...
"राहुल शर्मा "