चौदवां चाँद |
वो देखो कैसे जल रहा है चौदवां चाँद
शायद कल पूनम की रात होगी
चूमेगी जब चाँदनी पूरी धरा को
फिर अधूरी रात होगी
होगा अधूरापन फिर से चाँद में
धरती की अधूरी प्यास होगी
आस होगी जब मिलन की तब अमावास रात होगी
वो देखो मिट रही नदिया की धारा
शायद सागर में अब तक प्यास होगी
मिटेगी सरिता जब लहरों से मिलकर
उस जहर में भी एक मिठास होगी
जब मिलेगी मौज से सागर की मस्ती
टूटेगी धारा पर उसे, सागर मिलन की आस होगी
वो देखो मिल रही कैसे हैं खुशियाँ हर घडी अब
शायद फिर ग़मों की बरसात होगी
बन रहे कैसे ये नग्मे जिंदगी में
न जाने अब ये किन धुरों के साथ होगी
हर ग़ज़ल को रहती है तेरी ही आस क्यूँ
आखिर कब ये साँसे उन साँसों के साथ होंगी
जाग कर सोचा तो धड़कने कह उठी
निकल सपनों से बहार छोड़ साकी जाम तू
इस सुबह के बाद भी एक शाम होगी
होगा संघर्ष जब जिंदगी में
हकीकत यही अब तेरे साथ होगी ...
वो दखो कैसे ...
"राहुल शर्मा"
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