Friday, May 24, 2013

चौदवां चाँद

चौदवां चाँद 















वो देखो कैसे जल रहा है चौदवां चाँद 
शायद कल पूनम की रात होगी 
चूमेगी जब चाँदनी पूरी धरा को 
फिर अधूरी रात होगी 
होगा अधूरापन फिर से चाँद में
धरती की अधूरी प्यास होगी 
आस होगी जब मिलन की तब अमावास रात होगी 

वो देखो मिट रही नदिया की धारा 
शायद सागर में अब तक प्यास होगी 
मिटेगी सरिता जब लहरों से मिलकर 
उस जहर में भी एक मिठास होगी 
जब मिलेगी मौज से सागर की मस्ती 
टूटेगी धारा पर उसे, सागर मिलन की आस होगी 

वो देखो मिल रही कैसे हैं खुशियाँ हर घडी अब 
शायद फिर ग़मों की बरसात होगी 
बन रहे कैसे ये नग्मे जिंदगी में 
न जाने अब ये किन धुरों के साथ होगी 
हर ग़ज़ल को रहती है तेरी ही आस क्यूँ 
आखिर कब ये साँसे उन साँसों के साथ होंगी 
जाग कर सोचा तो धड़कने कह उठी 
निकल सपनों से बहार छोड़ साकी जाम तू 
इस सुबह के बाद भी एक शाम होगी 
होगा संघर्ष जब जिंदगी में 
हकीकत यही अब तेरे साथ होगी ...
वो दखो कैसे ...


"राहुल शर्मा"

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