Sunday, September 25, 2011

वो एक गुलाब...




















                           वो एक गुलाब का फूल


मैं एक दरिया हूँ, दरिया को सोहराब लिखता हूँ
स्याही से परेशाँ यूँ ही दिल का हर हिसाब लिखता हूँ
कलियों ने कई क़यामत की जिसे गुलिस्ताँ बनाने की
मैं उस सेहरा को तेरा हर वो एक गुलाब लिखता हूँ...!!


नज़र को सादगी, साँसों को बस महताब लिखता हूँ
कलम को जिंदगी शब्दों को एक मकाम लिखता हूँ
मैं हँसता था मैं हँसता हूँ ख़ुशी का रूप दिखता हूँ
कई पतझड़ छिपाए हर घडी श्रृंगार रचता हूँ
बस अब रुकता हूँ इन अधरों को अपनी शाम लिखता हूँ
इन लबों को आज मैं अपना वो एक गुलाब लिखता हूँ...!!


ना कोई दोष ना शुबा, किसी पुराने घरोंदे का
मैं अपनी इस गज़ल को आज अपनी जान लिखता हूँ
रुक गयी कभी कलम जो खुद से कुंठित हो कहीं
तेरी इबादत को इसे एक नया अवतार लिखता हूँ

इन लबों को आज मैं....

मैं एक दरिया हूँ...!!


मैं लिखता हूँ, तो अक्सर सब भूल जाता हूँ
खुद की यादों में साकी यूँ ही खो जाता हूँ
तेरी जुल्फों को अपनी एक नयी सी छांव लिखता हूँ
इन लबों को आज मैं...
मैं एक दरिया हूँ, दरिया को...!!


इकरार ऐसा तुझपे, हर सदी का सीमान्त लिखता हूँ
हर जहाँ तेरा ही बस अधिकार लिखता हूँ
मैं एक वादा भी लिखता हूँ हमारी तहरीर लिखता हूँ
अगले हर जनम इस गुलाब का गुलिस्ताँ लिखता हूँ...
परेशाँ पंखुड़ियाँ ना हो पाये अब किसी दम
मैं हर काँटों को भी एक अनछुआ ऐतवार लिखता हूँ
तुझे तुझसे मिलाने का मैं आज सलाम लिखता हूँ
अगली हर सदी खुद को तेरा निशाँ लिखता हूँ

मैं तुझको तेरी साँसों को मेरा गुलाब लिखता हूँ
इन लबों को आज मैं अपना वो एक गुलाब लिखता हूँ...

इन लबों को आज मैं...

मैं एक दरिया हूँ, दरिया को...!!

"राहुल शर्मा "

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