Thursday, June 26, 2008

शहर


इस शहर की शाम का आलम बड़ा अजीब है,
राहें कितनी दूर हैं पर, मंजिल बहुत करीब है॥
हमने देखी हैं जलती लाशें, लोगों की,
यहाँ जलते जिंदादिल, मुर्दे खुशनसीब हैं॥
रोती आंखों को देखा है, टूटती साँसें देखी हैं,
यहाँ रोते हैं हँसते लोग, खुश बहुत रकीब हैं॥
टूटती हैं शाखें जब, मुरझाते फूलों को देखा है,
धीरे-धीरे रूकती, हर धड़कन को हमने देखा है...
यहाँ मरी इंसानियत दिल बड़े गरीब हैं॥
मरती चाहत देखी है, ख्वाब टूटते देखे हैं,
हर पल मिलते सुख पल भर में जाते देखे है,
खिलते ख्वाब इस शहर में, बनते महलों को देखा है...
खुशियों वाली गलियाँ यहाँ बदनसीब हैं॥
इस शहर की शाम का आलम....

"राहुल शर्मा "

2 comments:

  1. वो बैंक कितना बदनसीब है,,जहाँ लोग दिन में बैंकिंग और रात में कवितायेँ....बात बड़ी अजीब है!!!

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  2. tu tension na le meri kavitaon se bank ko koi loss nahi hoga...)

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