Monday, May 19, 2014

वो जो रौशन …

वो जो रौशन … 












वो जो रौशन हुए बैठे हैं रुख़्सार से तेरे
कसम तुझको है ऐ सूरज मुझे वो चाँद ना कहना
ना करना मुझे महताब उस चांदनी से तू
जला तुझको ओढ़ा जिसने शीतल का ये गहना

वो जो साहिल पे बैठे हैं लहरों की आस में
कसम मुझको ऐ सरिता तेरा वो दीदार ना करना
नहीं करना मुझे अब पार लहरों की इन मौजों से
तोड़े नदियों का जो आँगन सजाने खुद का इक सपना

वो सुरमय नजारों से जो संगीन हैं तेरे
कसम तुझको तेरे साज की मुझे वो राग ना कहना
ना कर मुझे संगीत की उस लय में अब मदहोश
सरगम बन रही जहाँ सर के गम का बसेरा ।।

                                                                                 "राहुल शर्मा"




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